मोदी सरकार की जाति जनगणना योजना: जानें 10 सबसे अहम सवालों के जवाब

जातिगत जनगणना को लेकर मोदी सरकार का बड़ा कदम, जानिए इससे जुड़ी 10 बड़ी बातें, पिछड़ी जातियों और आरक्षण व्यवस्था पर असर।

मोदी सरकार की जाति जनगणना योजना: जानें 10 सबसे अहम सवालों के जवाब
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जाति जनगणना पर मोदी सरकार का दांव: जानिए 10 बड़े सवालों के जवाब और इससे जुड़ी राजनीति

भारत की स्वतंत्रता के बाद पहली बार केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए जातिगत जनगणना (Caste Census) को हरी झंडी दे दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। इसके साथ ही देश की सामाजिक और राजनीतिक दिशा में बड़ा बदलाव संभव माना जा रहा है।

क्या है जातिगत जनगणना?
जातिगत जनगणना का मतलब है देश की सभी जातियों की गणना कर उनके वास्तविक आंकड़े सार्वजनिक करना। पिछली बार ऐसी गणना 1931 में ब्रिटिश शासन में हुई थी। आज़ाद भारत में यह पहली बार होगा जब जातियों के आंकड़े आधिकारिक तौर पर जारी किए जाएंगे।

क्यों पड़ी इसकी जरूरत?
2011 में SECC (Socio Economic Caste Census) के तहत आंकड़े इकट्ठा तो किए गए लेकिन उन्हें कभी जारी नहीं किया गया। विशेषज्ञ मानते हैं कि सामाजिक योजनाओं की प्रभावशीलता और आरक्षण नीति को सही दिशा देने के लिए यह आंकड़े बेहद जरूरी हैं।

इससे क्या हो सकता है बदलाव?
जातिगत आंकड़ों के सामने आने से OBC आरक्षण 27% से अधिक करने की मांग तेज़ हो सकती है। साथ ही आरक्षण की वर्तमान 50% सीमा को खत्म करने की कानूनी संभावनाएं भी बन सकती हैं।

किन राज्यों में पहले से हुआ सर्वे?
बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में पहले ही जाति सर्वेक्षण (Caste Survey) किया गया है। बिहार में जारी आंकड़ों के अनुसार OBC और EBC वर्ग की आबादी 63% से भी अधिक है।

क्या है राजनीतिक समीकरण?
जाति जनगणना अब राजनीतिक मुद्दा बन चुकी है। विपक्षी दलों ने लगातार इसकी मांग की है। मंडल आयोग की सिफारिशों और SECC 2011 के आधार पर सामाजिक न्याय के नए स्वरूप की मांग जोर पकड़ चुकी है।

कौन-सी हैं प्रमुख चुनौतियां?
जातियों के नाम, वर्तनी और उप-जातियों के आंकड़े दर्ज करने में तकनीकी और प्रशासनिक दिक्कतें सामने आई हैं। 2011 के आंकड़ों में 46 लाख जातियों के नाम रिकॉर्ड हुए, जिससे यह प्रक्रिया और जटिल हो गई है।

निष्कर्ष:
जातिगत जनगणना का निर्णय भारत के सामाजिक तानेबाने, राजनीतिक समीकरण और आरक्षण नीति पर गहरा असर डाल सकता है। यह फैसला OBC, EBC और अन्य वंचित वर्गों के लिए नई उम्मीद लेकर आया है।